Friday, October 24, 2014

GOOD MORNING

A Smile Is Like a
Simcard & Life Is Like s Cellphone Whenever 
You Insert The 
Simcard Of a Smile , 
a Beautiful Day Is 
Activated ...Good Morning. Happy Goverdhan Puja today !

Saturday, October 4, 2014

ध्यान के लघु प्रयोग




निष्क्रिय ध्यान!

यह ध्यान प्रात:काल के लिए है। इस ध्यान में रीढ़ को सीधा रख कर, आंखें बंद करके, गर्दन को सीधा रखना है। ओंठ बंद हों और जीभ तालु से लगी हो। श्वास धीमी गहरी लेना है। और ध्यान नाभि के पास रखना है। नाभि-केंद्र पर श्वास के कारण जो कंपन मालूम होता है, उसके प्रति जागे रहना है। बस इतना ही करना है। यह प्रयोग चित्त को शांत करता है और विचारों को शून्य कर देता है। इस शून्य से अंतत: स्वयं में प्रवेश हो जाता है।
इस प्रयोग में हम क्या करेंगे? शांत बैठेंगे। शरीर को शिथिल, रिलैक्स्ड और रीढ़ को सीधा रखेंगे। शरीर के सारे हलन-चलन, मूवमेंट को छोड़ देंगे। शांत, धीमे और गहरी श्वास लेंगे। और मौन, अपनी श्वास को देखते रहें और बाहर की जो ध्वनियां सुनाई पड़ें, उन्हें सुनते रहेंगे। कोई प्रतिक्रिया नहीं करेंगे। उन पर कोई विचार नहीं करेंगे। शब्द न हों और हम केवल साक्षी हैं, जो भी हो रहा है, हम केवल उसे दूर खड़े जान रहे हैं, ऐसे भाव में अपने को छोड़ देंगे। कहीं कोई एकाग्रता, कनसनट्रेशन नहीं करनी है। बस चुप जो भी हो रहा है, उसके प्रति जागरूक बने रहना है।
सुनो! आंखें बंद कर लो और सुनो। चिडि़यों की टीवी-टुट, हवाओं के वृक्षों को हिलाते थपेड़े, किसी बच्चे का रोना और पास के कुएं पर चलती हुई रहट की आवाज- और बस सुनते रहो, अपने भीतर श्वास स्पंदन और हृदय की धड़कन। और, फिर एक अभिनव शांति और सन्नाटा उतरेगा और आप पाओगे कि बाहर ध्वनि है, पर भीतर निस्तब्धता है। और आप पाओगे कि एक नये शांति के आयाम में प्रवेश हुआ है। तब विचार नहीं रह जाते हैं, केवल चेतना रह जाती है। और इस शून्य के माध्यम में ध्यान, अटेंशन उस और मुड़ता है जहां हमारा आवास है। हम बाहर से घर की ओर मुड़ते हैं।
दर्शन बाहर लाया है, दर्शन ही भीतर ले जाता है। केवल देखते रहो- देखते रहो-विचार को, श्वास को, नाभि स्पंदन को। और कोई प्रतिक्रिया मत करो। और फिर कुछ होता है, जो हमारे चित्त की सृष्टिं नहीं है, जो हमारी सृष्टिं नहीं है, वरन हमारा होना है, हमारी सत्ता है, जो धर्म है, जिसने हमें धारण किया है, वह उद्घाटित हो जाता है और हम आश्चर्यो के आश्चर्य स्वयं के समक्ष खड़े हो जाते हैं।


(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)

Monday, February 17, 2014

सफल जीवन के तीन सूत्र : स्वास्थ्य, शांति और शक्ति

सफल जीवन के तीन सूत्र : स्वास्थ्य, शांति और शक्ति



2014-02-17 23:29 GMT+05:30 ashok karnani <ashokkarnanis@gmail.com>:
हर व्यक्ति अपने जीवन में सफल बनना चाहता है। चाहे वह साधारण व्यक्ति हो या आध्यात्मिक, वह तरक्की करना चाहता है। हालांकि लोगों का ज्यादातर समय अतीत की उधेड़बुन में या भविष्य की कल्पना में ही बीत जाता है। वे या तो स्मृति में उलझा रहते हैं या फिर मधुर काल्पनिक सपने देखते रहते हैं। इस कारण वर्तमान उनके हाथ से छूट जाता है। वे उसे पकड़ ही नहीं पाते। किंतु वास्तविकता यह है कि जो कुछ घटित होता है वह वर्तमान में होता है। इसलिए व्यक्ति को अपने वर्तमान के प्रति जागरूक रहना चाहिए। 

वर्तमान जीवन को अच्छा बनाने के लिए तीन सूत्र महत्वपूर्ण हैं: 1. स्वास्थ्य संपन्नता,2. शक्ति संपन्नता और 3. शांति संपन्नता। हर व्यक्ति को अच्छा स्वस्थ चाहिए। कोई भी बीमार नहीं होना चाहता। पर स्वस्थ जीवन के लिए जरूरी है कि व्यक्ति खाद्य-संयम का अभ्यास करे। यदि बिल्कुल खाना छोड़ दिया जाए तो जीना मुश्किल हो जाता है और खाता ही चला जाए तो जीना और ज्यादा मुश्किल हो जाता है। खाना या नहीं खाना बड़ी बात नहीं होती। बड़ी बात है कि खाने और न खाने में विवेक रखना। कब, क्या और कितना खाना, यह जानकारी होनी चाहिए। जिसकी पाचन-क्रिया कमजोर हो, उसे तो अधिक सावधानी रखनी चाहिए। यदि वह ज्यादा खाता है, गरिष्ठ भोजन करता है अथवा बार-बार खाता है तो फिर अच्छे स्वास्थ्य की आशा नहीं करनी चाहिए। 
साधक के लिए तो इस पर और अधिक ध्यान देने की जरूरत है कि वह कब, क्या और कितना खाए? भोजन से स्वास्थ्य और साधना दोनों प्रभावित हो सकते हैं। आचार्यश्री महाप्रज्ञ का स्वास्थ्य नब्बे वर्ष की अवस्था में भी प्राय: ठीक रहता था। खाद्य संयम के कारण वे अपने स्वास्थ्य की सुरक्षा किए हुए थे। अनेक बार यह बात उनसे सुनी गई है '-तली हुई चीजों का तो मुझे स्वाद भी मालूम नहीं है।' उनका कहना था कि जो व्यक्ति बौद्धिक श्रम करते हैं, उन्हें खाने का संयम अवश्य करना चाहिए। खाद्य-संयम से अनेक छोटी-मोटी बीमारियां स्वत: दूर हो जाती हैं। 

मनुष्य कमजोर भी रहना नहीं चाहता। वह शक्तिशाली बनना चाहता है। वास्तव में तो इंसान के भीतर अनंत शक्तियों का भंडार भरा पड़ा है। जरूरत यह है कि वे अनंत शक्तियां प्रकट हों। मनुष्य के पास सब कुछ है- ज्ञानशक्ति, चिंतनशक्ति, कर्मशक्ति आदि। यदि वह अपनी शक्तियों को जागरूक करे और सही दिशा में लगाए तो बहुत विकास कर सकता है। शक्तिसंपन्न व्यक्ति वर्तमान में जीना चाहता है क्योंकि उसे अपनी क्षमताओं पर विश्वास होता है। वह कोई कार्य अपनी शक्ति, श्रम, समय और सोच के समन्वय के साथ करता है, जिससे अपने जीवन को सार्थक कर सकता है। 

मनुष्य शरीर से सबल बने ताकि रोग तनाव आदि उसे प्रभावित न कर सकें। किंतु शरीर की ताकत से भीज्यादा जरूरी है मनोबल संकल्पबल संयमबल आदि। यदि व्यक्ति का मनोबल मजबूत है वह दृढ़संकल्पशक्ति वाला है और संयम के प्रति उसकी गहरी निष्ठा है तो ऐसा कोई कार्य नहीं जिसे वह न कर सके।व्यक्ति नई शक्तियों को जगाने का हर संभव प्रयास करे और अच्छे कार्यों का संकल्प ले तो वह अपने वर्तमानजीवन को अच्छा बना सकता है। 

पर जहां क्रोध है लोभ है झगड़ा है असहिष्णुता है वहां व्यक्ति की शांति नष्ट हो जाती है। जहां परिवार मेंकलह होता है वहां अशांति का वातावरण बन जाता है। अनेक लोग आते हैं कि महाराज हमें केवल शांतिचाहिए। आप कोई ऐसा मंत्र बता दें जिससे हमंे शांति मिल जाए। एक बार आचार्य तुलसी के पास अमेरिकीलोग आए। उन्होंने पूछा आचार्यजी जीवन में शांति कैसे मिल सकती है आचार्यश्री ने कहा अमेरिका तोधनवान राष्ट्र है। आपको सब तरह के साधन उपलब्ध हैं। फिर भी क्या शांति नहीं मिली अमेरिकी लोगों नेकहा नहीं। तब आचार्य तुलसी ने कहा शांति की प्राप्ति भौतिक पदार्थों से नहीं त्याग और संयम के विकास सेहोती है। लालसा की तेज धारा में बहने वाला व्यक्ति कभी शांति का दर्शन नहीं कर सकता। वह हर समयअशांति की आग में झुलसता रहता है। 

इस प्रकार स्वास्थ्य संपन्नता शक्ति संपन्नता और शांति संपन्नता हो तो व्यक्ति अपने वर्तमान जीवन कोसफल बना सकता है। 

प्रस्तुति ललित ग र्ग